प्रेम कविता
जब मैं तुम्हारे गोद मे सर रखकर सोता था ,
मानो प्यासे पथिक को पानी मिल जाता था ।।
उलझी हुई गेसुओ को जब अपनी उंगलियो से सुलझाता था ,
,घास पर पड़ी ओस की बूंदों को सूर्य की किरणें अपनी तपिश से सूखा देता था।।
नाज़ुक स्पर्श जब होता था तुम्हारे गुलाबी होटो का ,
तो तुम्हारी सिसकिया कंकड़ बनकर स्थिर जल में कंपन पैदा कर देती थी ।।
प्यार भरी नजरों से जब घूरता था मैं तुम्हे ,
तुम्हारी हया भारी नज़रे दिल का फसाना बयां करती थी ।।
जब अगले मुलाकात के बारे में मैं पूछता था ,
तो तुम्हारी खामोशी प्यार की तराने बुना करती थी ।।