बिंदास बचपन…
कुदरत ने मेरे संग एक खेल किया ,
मेरा बचपन मुझसे छीन लिया ,
चलना भी न आया था मुझे ,
पता नहीं कब मैंने दौड़ लिया ,
अपनों ने उम्मीद का दामन ,मुझसे जोड़ लिया ,
और अचानक सबकुछ कांच की तरह टूट गया,
न जाने मेरा बिंदास बचपन कहाँ छूट गया।
अब बारी थी किस्मत की ,
और एक दिन किस्मत भी रूठ गई ,
आजादी की डोर टूट गया ,
मनो मेरा विवेक कोई मुझसे लुट गया ,
मै दायित्वों के बोझ तले दब गया ,
न जाने मेरा बिंदास बचपन कहाँ छूट गया।
समय है कुछ सिखलाता…
अतीत हमे दुखी कर देता ,
भविष्य हमे चिंतित कर देता,
वर्तमान हमे जीने नहीं देता ,
ऐसे में समय है कुछ सिखलाता,
और इंसान शायद इसी वजह से ,है बदल जाता।
काल चक्र जब उल्टा है होता,
अच्छा काम भी बुरा जाता ,
स्वर्ण भी स्पर्श पाकर ,
मिटटी में परवर्तित है हो जाता ,
ऐसे में समय है कुछ सिखलाता।
और इंसान शायद इसी वजह से ,है बदल जाता।
ईश्वर तो सिर्फ इंसान है बनता ,
इंसान है अनगिनत नाते रिश्ते जोड़ता,
बिपरीत परिष्थी में इनकी परख है होता,
फिर असहाय पीरा हमे मिल जाता ,
ऐसे में समय है कुछ सिखलाता।
और इंसान शायद इसी वजह से ,है बदल जाता।
बिपतिया अकेले नहीं आती ,
साथ में एक शिक्षक है लती,
भले बुरे का है वो पहचान कराता ,
समय ही वो महान शिक्षक कहलाता ,
ऐसे में समय है कुछ सिखलाता।
और इंसान शायद इसी वजह से ,है बदल जाता।
तुम बदल सी गयी हो…
ढूढ़ता हूँ मै जिसे ,
जाने कब खो दिया उसे ,
ये सत्य है या कल्पना ,
यह सोच सोच कर मेरा हिर्दय विचलित हो रहा है ,
की जाने तुम बदल सी गयी हो।
वर्तमान के साये में अतीत के आशय को ,
पता नहीं क्यों तूम भूल रहे हो ,
ये घटित है या एह्शाश,
यह सोच सोच कर मेरा हिर्दय विचलित हो रहा है ,
की जाने तुम बदल सी गयी हो।
आस जगी की तुम्हे पाऊंगा ,
खोये यादों को फिर से बसाऊंगा ,
जग जायेंगे उम्मीदे सारी ,
होंगी फिर से हसरते पूरी ,
यह सोच सोच कर मेरा हिर्दय पुलकित हो रहा है ,
की मनो अब तुम संभल सी गयी हो।